कोरे कागज की तरह जिन्दगी को देख कर अब रोता है क्यों, लिखने का मौका मिला था खुद तुने कुछ लिखा ही नहीं……
अक्सर सब कहते है की जिन्दगी एक किताब है मगर न जाने क्यों मुझे लगता है जिन्दगी एक नोट बुक है जिसका हर पन्ना खाली होता है हम चाहकर भी उसमे से कुछ पढ़ नहीं पाते.. नहीं जान पाते की इस पन्ने पे क्या लिखा होगा.. बस जो पन्ना पलट देते है उसमे अपने आप वोह लिख जाते है जो मिटाया नहीं जा सकता … जो बदला भी नहीं जा सकता … उसमे कुछ गलत है तो सही भी नहीं किया जा सकता हम बेबस है .. एक खाली नोट बुक के कोरे पन्ने पे न जाने क्या क्या लिख बैठते है .. और फिर उसे पलट देते है और नए कोरे पन्ने में फिर से तलाश करते है अपने लिए कुछ ???? मगर सच तो ये है की जिन्दगी हमे नोट बुक की तरह खाली मिलती है और हम उन पन्नो को भरते है और वही हमारी जिन्दगी की किताब बन जाती है … एक प्रेरक प्रसंग याद आ रहा है जो हमारे सर ने हमे सुनाया था …. एक आदमी
भगवान से कहता है की अगर आपने ही हमारी किस्मत लिखी है तो फिर हमे कुछ भी करने की क्या जरुरत है .. दुःख है तो दुःख मिलेगा कामयाबी मिलनी है तो मिलेगी .. हम क्यों कुछ करे ??? कुछ बदलने की कोशिश भी क्यों करे ?? भगवान धीरे से मुस्कुराये और बोले बेटा हो सकता है मैंने सब की किस्मत मे “As u wish ” जैसा तुम चाहो ” लिखा हो …!!!!!
बस ये तीन शब्द ही सच है हमारी जिन्दगी की नोट बुक को एक किताब बनाने के लिए …
फिर फैसला आपका है चाहे तो जमीन या फिर आसमान….. एक किताब जिसे सब पढ़े और कुछ सीखे या फिर खाली पन्ने सिर्फ अफ़सोस करने के लिए …
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