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दूसरों के घर जब चली जाती है ये बेटियां,
घर की रौनकों को भी संग ले जाती है ये बेटियां।।
जब जनम लेती है तो बोझ सी लगती है ये,
पर खुदा सी लगती है जब खिलखिलाती है ये बेटियां।।
सज संवर के माँ की नक़ल करती है जब ये कभी,
पूरे घर को अपना बचपन याद दिलाती है ये बेटियां।।
हर दरो दीवार लगती है तब झूमने,
काम करते करते जब कुछ गुनगुनाती है ये बेटियां।।
हर बला को कहती है सिर्फ उनपर ही आ जाये बस,
पापा को जब कभी उदास पाती है ये बेटियां।।
सूना-सूना बेरंग सा लगती है छत और जमीं,
जब कभी दुःख में खामोश हो जाती है ये बेटियां।।
हर तरफ दानव है फैले दामन को करने तार तार,
इसलिए जनम लेने से भी अब घबराती है ये बेटियां।।
संभल कर प्यार से पलकों पे सजा के रखो इन्हें,
कई जिंदगियों में प्यार की रौशनी फैलाती है ये बेटियां।।
प्यार की धूप और सम्मान की बारिश ही हो,
खो के खुद को अपनी पहचान चाहती है ये बेटियां।।
ये बेटियां ये बेटियां
सब रौनकें है बेटियां जिन्दगी की सबसे कीमती शै है ये बेटियां।।
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