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मै उड़ना चाहती हूँ सच में हमेशा मेरा मन करता है की उड़ कर कही दूर निकल जाऊ, आकाश की ऊँचाइयों को छु लू , बादलों के बीच जाकर देखू क्या है इनमे जो ये उड़ते फिरते है.. देखू तो सही ये हवा आती कहा से है, और जिस भगवन के लिए हम लड़ते है उसका घर भी तो कहते है न ऊपर ही कही है उसको भगवन को भी मिलकर आती … हाँ हाँ जानती हूँ की इस बारे में साइंस अपने सिद्वांत दे देगी मगर मुझे सिद्वांत नहीं चहिये… मुझे तो खुद इन्हें महसूस करना है … उड़ना है बहतु दूर तक….. आप मेरी इस उडान को अब नारी की तरक्की से मत जोडियेगा … कोई कितनी भी तरक्की कर ले रहेगा तो जमीन पर ही न …… असमान तो छु न पायेगा .. तारों के बीच जाकर टिमटिमा तो न पायेगा ……. काश कोई मुझे अपने पंख दे दे ताकि मै इन सब अहसासों को महसूस कर सकू .. जी सकू जिन्दगी का सबसे खुबसूरत पल… मुझे लगता है की हर नारी जीवन में एक बार जरुर उड़ना चाहती है … आखिर चिड़ियाँ और गुड़ियाँ एक जैसी तो होती है … मामी यु भी तो कहती है की तुम मेरी चिड़िया… मगर काश की इस चिड़िया के भी पंख होते ……..जब मेरा दिल करता मै फुर फुर उड़ कर कभी एक पेड़ की डाली पर बैठती और कभी दूसरी पर … जब मन उदास होता तो एक लम्बी उडान पर निकल जाती…हवा के साथ साथ बहती और रात को चाँद जिसे में रोज़ धरती से देखती हूँ उसके पास जाती और पूछती क्यों चाँद इतना सुन्दर होते हुए भी तू अकेला सा क्यों दीखता है ? क्या तेरा दिल नहीं करता धरती पे आने का ?मगर में जानती हूँ वह कहेगा नहीं धरती पे आने से अच्छा में गायब ही हो जाऊ .. अगर मै उड़ पाती तो मामी को भी चिंता न होती की मेरी बेटी कहाँ गयी कब आयेगी .. मेरे जीवन में मेरे सबसे अच्छे दोस्त होते ये पंछी जिनके साथ दिन भर रहती अपने सुख-दुःख कहती और उनके सुनती… काश की मै उड़ सकती … मेरा मन उड़ना चाहता है .. मगर जानती हूँ कोई मुझे पंख न देगा, कोई उड़ने भी न देगा… शायद जीवन में आकर एक बार ही उड़ना संभव होता है इस जिस्म को छोड़कर.. जब रूह दूर तक उड़ जाती है हर असमान को पार करती हुई…… इंसान होना भी कितनी बड़ी मज़बूरी है…… चलिए कभी तो ये सपना पूरा होगा की इंसान होते हुए भी उड़ सकू .. कहते है न की उम्मीद पे दुनिया कायम है ……….. मगर अगर आप का भी उड़ने का मन करते है या आपको पता है की कैसे उड़ा जाता है जरुर बताइयेगा ……
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